पूर्णिया
प्रमोशन पाकर या हाल में सीधी भर्ती से आए दारोगा पुलिस डायरी लिखने और अन्य कागजी प्रक्रिया पूरा करने में गच्चा खा रहे हैं। इसके पीछे मुख्य वजह पुरानी अरबी-फारसी और कैथी भाषा का इस्तेमाल है। दिक्कतें ज्यादा बढ़ी तो विभाग ऐसे पुलिसकर्मियों के लिए छोटी अवधि के प्रशिक्षण की तैयारी कर रहा है। अरबी-फारसी, कैथी की समझ न होने के कारण सही केस डायरी नहीं बन पाती। नतीजतन, कोर्ट की फटकार भी इन पुलिस अधिकारियों को सुननी पड़ती है। नए बैच के सब इंस्पेक्टर और सिपाही फर्द बयान, मशरूफ, रोजनामचा, बदजुमन्ना, सरब, मुहर, महमूला, लाचिरागी, पेसर, सकिनान जैसे शब्दों को सुनकर सिर पकड़ लेते हैं। शब्दों के जाल में उलझा कर कई बार अपराधियों के वकील भी न्यायालय में इसका लाभ ले लेते हैं।
सदर थाना अध्यक्ष मनोज कुमार कहते हैं कि बदमाश के पास से जो माल बरामद होता है उसे एक पोटली में सील किया जाता है। फर्द विवरण पुलिस लिखती है। एक पुलिंदा सरब मुहर महमूला इसके बाद उन चीजों का उल्लेख किया जाता है, जिसे पोटली में सील किया जाता है। बीटेक, एमटेक, बीएड और अन्य प्रोफेशनल कोर्स कर दरोगा बने पुलिसकर्मियों को भी ऐसे शब्दों से परेशानी हो रही है।
इन शब्दों का होता है अधिक प्रयोग
बजरिये- आपको, पेसर, – पिता, नियत- ठीक, हसजाबता- नियमानुसार, सफा चाहर्रुम- रजिस्टर नंबर, मशरूफ- व्यस्त, हाजा थाना- इस थाने में, रवानगी- प्रस्थान करना, आमद- आगमन, बदमुजन्ना- हिस्ट्रीशीटर, रोजनामचा आम- सामान्य दैनिकी, रोजनामचा हास- केस डायरी, मासूर- लगाए गए, तितम्मा- पूरक, हमराहियान- साथी, नफर- संख्या, फौती- मरना, मकतूल- जिसकी हत्या हुई है, लाचिरागी- चिराग जलाने वाला नहीं है.. आदि।
अपराधियों के वकील लेते हैं लाभ
कई अपराधियों के वकील पुलिसकर्मी के द्वारा समर्पित किए गए अंतिम आरोप पत्र में भाषा का हवाला देकर इसका लाभ ले लेते हैं। मसलन, अपराधी को सुबह के दस बजे के करीब घटनास्थल से गिरफ्तार किया गया। एफआईआर में गिरफ्तारी का समय लगभग दस बजे लिखा हुआ है। केस डायरी में नियत समय दस बजे लिख दिया गया है, तो अपराधियों के वकील इस बात का बहस कर लेते हैं कि पुलिस की एफआईआर और केस डायरी में लिखा गया समय मेल नहीं खा रहा है। चूंकि एफआईआर में लगभग दस बजे लिखा हुआ है और अंतिम आरोपपत्र व केस डायरी में नियत 10 बजे का समय बताया जा रहा है। जो अलग – अलग है।
बिना भाषा ज्ञान के बनाए जाते हैं रीडर
पुलिस एक्ट 1861 पहले अंग्रेजी में था। अंग्रेजों ने इसकी आधिकारिक भाषा हिन्दुस्तान के अनुरूप बनाई। उसमें अरबी फारसी और उर्दू के शब्दों का प्रयोग अधिक होता था। उसी भाषा में इसका अनुवाद भी हुआ। अंग्रेजों ने रीडर का पद बनाया। जिसे अंग्रेजी के साथ अरबी फारसी का ज्ञान होता था वही रीडर बनता था। पूर्व में भी यही परंपरा कायम थी। अब सिपाही रैंक के पुलिसकर्मियों को कंप्यूटर का ज्ञान होने पर उन्हें रीडर का काम थमा दिया जा रहा है। इस वजह से भी कई बार तकनीकी गड़बड़ियां भी सामने आती है।