पटना: बिहार की अनुसूचित जातियों में 42.93 प्रतिशत और सामान्य वर्ग में भी 25.09 प्रतिशत गरीब

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बिहार सरकार ने मंगलवार को विधानमंडल के दोनों सदनों में जाति आधारित गणना की पूरी रिपोर्ट पेश कर दी

रिपोर्ट के अनुसार, बिहार की एक तिहाई से ज्यादा आबादी गरीब है

राज्य में मात्र सात प्रतिशत लोग ही स्नातक (ग्रेजुएट) हैं

पटना: 

बिहार सरकार ने मंगलवार को विधानमंडल के दोनों सदनों में जाति आधारित गणना की पूरी रिपोर्ट पेश कर दी, जिसमें सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े भी शामिल हैं। संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने जाति आधारित गणना की पूरी रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखा । रिपोर्ट के अनुसार, बिहार की एक तिहाई से ज्यादा आबादी गरीब है। करीब 34.13 प्रतिशत परिवारों की मासिक आमदनी मात्र छह हजार रुपए और छह हजार से 10 हजार रुपए प्रति महीना वाले परिवारों की संख्या 29.61 प्रतिशत बताई गई है । यानी राज्य में 10 हजार रुपए प्रति महीना तक की आदमनी वाले परिवारों की संख्या 63 फीसदी से ज्यादा है।

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इसी तरह 10 हजार से ज्यादा लेकिन 20 हजार प्रतिमाह से कम आमदनी वाले परिवारों की संख्या 18.06 प्रतिशत है। 20 हजार से 50 हजार मासिक आमदनी वाले परिवार 9.83 प्रतिशत हैं । वहीं ,पचास हजार से ज्यादा कमाने वाले  परिवारों का प्रतिशत मात्र 3.90 है। सर्वे के मुताबिक राज्य के 4.47 प्रतिशत परिवारों ने अपनी आय की जानकारी नहीं दी ।

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रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में सबसे ज्यादा गरीबी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में है । अनुसूचित जातियों में 42.93 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों में 42.70 प्रतिशत परिवार आर्थिक तौर पर कमजोर हैं । इसी तरह अत्यंत पिछड़ा वर्ग के 33.58, पिछड़ा वर्ग के 33.16 और सामान्य वर्ग के 25.09 प्रतिशत परिवार गरीब है। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, पिछड़ा वर्ग में यादव जाति और सामान्य वर्ग में भूमिहार जाति में सबसे ज्यादा गरीब हैं । यादवों की आबादी में 35.87 प्रतिशत परिवार और भूमिहारों में 27.58 प्रतिशत परिवार गरीब हैं । पिछड़ा वर्ग में यादवों के बाद सबसे ज्यादा गरीबी कुशवाहा (कोईरी ) परिवारों में है, यह संख्या 34.32 प्रतिशत है। वहीं  सामान्य वर्ग में भूमिहार के बाद ब्राह्मणों में 25.32 प्रतिशत परिवार गरीब हैं । इसी प्रकार राजपूत में 24.89 प्रतिशत परिवार गरीब हैं। बिहार में सामान्य वर्ग में सबसे धनी कायस्थ जाति है, जिसमें मात्र 13.83 प्रतिशत परिवार ही गरीब हैं।

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रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जाति में सबसे ज्यादा मुसहर गरीब हैं । मुसहर में 54 प्रतिशत, भुइया में 53, रविदास (चमार, मोची) में 42, पासवान (दुसाध), धारी , धरही तथा चौपाल में 39 – 39, पासी में 38, धोबी (रजक) में 35 प्रतिशत परिवार गरीब हैं। इसी तरह नाई 38.37, मल्लाह में 34.56, पान, सवासी, पानर 36, धानुक 34.35, नोनिया 35.88, चंद्रवंशी (कहार) 34.08, कुम्हार (प्रजापति ) 33.39, कानू 32.99 और बढ़ई जाति के 27.71 प्रतिशत परिवार गरीब हैं।
बिहार में शैक्षणिक स्थिति के संबंध में रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य में मात्र सात प्रतिशत लोग ही स्नातक
(ग्रेजुएट) हैं। राज्य की 22.67 प्रतिशत आबादी क्लास 1 से 5 तक, 14.33 प्रतिशत 6-8 तक, 14.71 प्रतिशत क्लास 9 से 10 तक पढ़ी – लिखी है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य में सबसे अधिक 16.73 प्रतिशत मजदूर/मिस्त्री के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं जबकि 7.7 प्रतिशत कि सान/काश्तकार हैं । वहीं , 1.57 प्रतिशत लोग सरकारी नौकरी , 1.22 प्रतिशत संगठित क्षेत्र में प्राइवेट जॉब, 2.14 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में प्राइवेट जॉब, 3.05 प्रतिशत स्वरोजगार कर रहे हैं।

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राज्य में 67.54 प्रतिशत गृहिणी और छात्र हैं। वहीं राज्य में 0.02 प्रतिशत लोग कचरा चुनकर और 0.03 प्रतिशत
लोग भीख मांग कर जीवन गुजर बसर कर रहे हैं ।
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी नौकरी में सबसे ज्यादा 3.19 प्रतिशत लोग सामान्य वर्ग के हैं। सामान्य वर्ग में सबसे अधिक 6.68 फीसदी कायस्थ जाति के पास सरकारी नौकरी है । इसके बाद भूमिहारों के पास 4.99 प्रतिशत, राजपूत के पास 3.81 प्रतिशत, ब्राह्मण के पास 3.60 प्रतिशत सरकारी नौकरी है। वहीं , पिछड़ा वर्ग में भाट/भट के पास सबसे अधिक 4.21 प्रतिशत सरकारी नौकरी है। इनके बाद कुर्मी के पास 3.11, कुशवाहा (कोईरी ) के पास 2.04 और यादवों के पास 1.55 प्रतिशत सरकारी नौकरी है। अनुसूचित जाति (एससी) में सबसे अधिक धोबी के पास 3.14 प्रति शत सरकारी नौकरी है।

रिपोर्ट के अनुसार बिहार में परिवारों की आवासीय स्थिति जिसमें पक्का मकान 2 या 2 से अधिक कमरा वाला परिवार 36.76 प्रतिशत है। पक्का मकान एक कमरा वाले परिवार 22.37 प्रतिशत है जबकि खपरैल/टीन छत वाले परिवार 26.54 प्रतिशत है। इसके साथ ही झोपड़ी में रहने वाले परिवार की संख्या 14.9 प्रतिशत है। वहीं , आवासहीन परिवार 0.24 प्रतिशत है।

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