बेटे की बीमारी से हार नहीं माना पिता, जंग लड़कर 243 बच्चों के घर में ही स्कूल की राह खुलवाई

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मुजफ्फरपुर

एक पिता की लड़ाई और संघर्ष ने असाध्य रोग से लड़ रहे सूबे के 243 बच्चों को पढ़ने का हक मिलने की राह खोल दी है। मांसपेशियों को बेहद कमजोर कर खड़े होने और चलने-फिरने तक में नाकाम कर देने वाले रोग डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित इन बच्चों को घर पर पढ़ाने की व्यवस्था की जाएगी। यह डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से जूझ रहे 12 वर्षीय बच्चे संस्कार के पिता संतोष कुमार की पहल से संभव हुआ है।

संतोष ने ऐसे बच्चों को शिक्षा का अधिकार नहीं मिलने को लेकर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी और कोई व्यवस्था नहीं होने पर सवाल उठाए। इसके बाद केंद्र सरकार ने राज्यों को इस रोग से पीड़ित बच्चों का ब्योरा जुटाकर शिक्षा का हक दिलाने के आदेश दिए हैं। पटना निवासी संतोष ने आरटीआई लगाई तो इन बच्चों के लिए पढ़ाई का कोई इंतजाम नहीं होने की बात सामने आई। सूबे में 243 बच्चों के डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के शिकार होने का पता चला।

मामला केंद्र सरकार के संज्ञान में लाए जाने पर स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के अंडर सेक्रेटरी केसी वासुदेवन ने इसे लेकर निर्देश जारी किया है। इसके बाद सूबे में जिलावार ऐसे बच्चों की सूची बनाई गई। राज्य कार्यक्रम अधिकारी ने सभी जिलों से सूची में दर्ज बच्चों के बारे में जरूरी जानकारी भेजने का निर्देश दिया है। मुजफ्फरपुर में 11 और पटना में 40 से अधिक बच्चे इस घातक बीमारी से पीड़ित मिले हैं।

पांच साल की उम्र तक दौड़ता रहा बच्चा अब चल भी नहीं पाता
पटना निवासी संतोष बताते हैं कि पांच साल तक जिस बेटे को दौड़ते देखा, वह अब ठीक से खड़ा भी नहीं हो पाता। दिल्ली एम्स में हुई जांच में डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित पाया गया। अब बेटा संस्कार 12 साल का है। शरीर साथ नहीं देता कि वह स्कूल जा सके। उसका जीवन कितने दिन का है, नहीं जानता। यह यही सोच कर यह लड़ाई लड़ रहा हूं।

बच्चों के दर्द भरे जीवन में खुशियां भरने की मुहिम
सूबे के 243 समेत पूरे देश से लगभग 16 हजार अभिभावकों को संतोष अपने साथ जोड़ चुके हैं। संतोष बताते हैं कि यह अकेले मेरे बच्चे की लड़ाई नहीं है, बल्कि पूरे देश के ऐसे बच्चों के लिए है जो इस बीमारी से अंतहीन पीड़ा झेल रहे हैं। उनके शिक्षा के अधिकार को जोड़ हम खुशियों के रंग भरने की मुहिम चला रहे हैं।

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