महिला सूफी संत बीबी कमाल के मजार पर जुटते हैं हिन्दू-मुस्लिम, इस तरकीब से बढ़ती है आंखों की रौशनी

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जहानाबाद

जहानाबाद जिले के काको में स्थित बीबी कमाल की दरगाह मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदायों के लिए सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है। बीबी कमाल का उर्स हर साल नवंबर में लगता है। इस मौके पर उनका आशीर्वाद लेने आने वाले भक्तों के बीच पके हुए चावल वितरित किए जाते हैं।

जहानाबाद से दस किलोमीटर की दूरी पर एनएच 110 के किनारे काको के समीप बीबी कमाल का दरगाह है। जहां प्रतिदिन लोग मन्नत मांगने और इबादत के लिए आते हैं। जिले के अलावा अन्य जगहों से भी लोग यहां आकर इबादत करते हैं। देश की पहली महिला सूफी संत होने का गौरव भी इन्हीं को प्राप्त है। फिरोजशाह तुगलक जैसे बादशाह ने भी बीबी कमाल को महान साध्वी के तौर पर अलंकृत किया था। इनकी मजार पर शेरशाह, जहांआरा जैसे जैसी हस्तियों ने चादरपोशी कर दुआएं मांगी थी।

काको स्थित सेहत कुआं में स्नान करने पर चर्म रोग से मिलती है निजात

महान सूफी संत बीबी कमाल की मजार पर लोग रुहानी इलाज के लिए मन्नत मांगते व इबादत करते हैं। जनानखाना से दरगाहशरीफ के अंदर लगे काले रंग के पत्थर को कड़ाह कहा जाता है। यहां आसेब जदा और मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग पर जुनूनी कैफियततारी होती है। दरगाह के अंदर वाले दरवाजे से सटे सफेद व काले पत्थर को लोग नयन कटोरी कहते हैं। मान्यता है कि इस पत्थर पर उंगली घिसकर आंख पर लगाने से आंख की रोशनी बढ़ जाती है। सेहत कुआं के नाम से चर्चित कुएं के पानी का उपयोग फिरोज शाह तुगलग ने कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए किया था।

दवाओं से नहीं दुआओं से मानसिक रूप से बीमार लोगों का होता है इलाज

बाबी कमाल की दरगाह पर आज भी लोग मानसिक रूप से बीमार लोगों को लेकर आते हैं। जहां मरीजों का इलाज दवाओं से नहीं दुआओं से होता है। मान्यता है कि यहां आने वाले रोगी बीबी कमाल के प्रभाव से स्वस्थ हो जाते हैं। अभी लोग विक्षिप्त व्यक्ति को दरगाह में लाकर छोड़ जाते हैं। दरगाह के आसपास ऐसे लोग घूमते हुए मिल जाएंगे। दरगाह में आने वाले मानसिक रूप से बीमार लोग बिना दवा दारू के धीरे-धीरे स्वस्थ हो जाते हैं।

सूफी महोत्सव में जुटते हैं देशभर के नामचीन कलाकार व श्रद्धालु

हर साल नवंबर में यहां उर्स होता है। इस मौके पर बिहार सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा पिछले कई वर्षों से सूफी महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें देशभर के नामचीन सूफी गायक आते हैं। सालाना उर्स पर चादरपोशी करने व सूफी गायन का आंनद उठाने देशभर से भारी संख्या में लोग पहुंते हैं। इस अवसर पर जिला प्रशासन द्वारा विशेष इंताजम किए जाते हैं।

हजरत बीबी कमाल का इतिहास

आईने अकबरी में महान सूफी संत मकदुमा बीबी कमाल की चर्चा की गयी है, जिन्होंने न सिर्फ जहानाबाद बल्कि पूरे विश्व में सूफियत की रोशनी जगमगायी है। इनका मूल नाम मकदुमा बीबी हटिया उर्फ बीबी कमाल है। कहते हैं कि उनके पिता शहाबुद्दीन पीर जराजौत रहमतुल्लाह अलैह बचपन में उन्हें प्यार से बीबी कमाल के नाम से पुकारते थे। बाद में वह इसी नाम से सुविख्यात हो गईं। इनकी माता का नाम मल्लिका जहां था। बताते हैं कि बीबी कमाल का जन्म 1211 ई. पूर्व तुर्कीस्तान के काशनगर में हुआ। मृत्यु 1296 ई. पूर्व में हुई थी।

कहा जाता है कि एक बार जब बीबी कमाल काको आईं, तो यहां के शासकों ने उन्हें खाने पर आमंत्रित किया। वह नैतिक, सिद्धांत, उपदेश, प्रगतिशील विचारधारा, आडम्बर एवं संकीर्णता विरोधी मत, खानकाह एवं संगीत के माध्यम से जन समुदाय तथा इंसानियत की खिदमत के लिए प्रतिबद्ध एवं समर्पित थीं। काको स्थित बीबी कमाल के मजार से 14 कोस दूर बिहारशरीफ में उनकी मौसी मखदुम शर्फुद्दीन यहिया मनेरी का मजार है। ठीक इतनी ही दूरी पर कच्ची दरगाह पटना में उनके पिता शहाबुद्दीन पीर जगजौत रहमतुल्लाह अलैह का मजार है।

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