मुजफ्फरपुर
दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले में भारत में सर्पदंश की घटनाएं सबसे अधिक होती हैं। सांप के काटने से सर्वाधिक मौतें ग्रामीण क्षेत्रों में 77 फीसदी होते हैं। जून से सितंबर में सर्पदंश की घटनाएं चरम पर होती हैं। कहा जाता है कि सर्पदंश के शिकार अधिकतर लोगों की मौत अज्ञानता और डर की वजह से होती है। उचित समय पर पीड़ित को इलाज उपलब्ध हो जाये तो उसकी जान बच सकती है। लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में एंटी स्नेक वेनम उपलब्ध होता है।
सर्पदंश का अनोखा अस्पताल लेकिन, मुजफ्फरपर में एक ऐसा भी अस्पताल है, जहां पत्थर के टुकड़ों से सांप काटे का इलाज होता है। ख्याति ऐसी कि यहां उत्तर बिहार के दरभंगा, मधुबनी, पूर्वी व पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, सारण, सीवान, गोपालगंज के अलावा नेपाल के लोग भी इलाज के लिए आते हैं। इस पत्थर के प्रभाव को देखते हुए लोग इसे जादूई और रहस्यमयी पत्थर भी कहते हैं।
हर साल 4500 लोगों की सर्पदंश से मौत
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद का कहना है कि सांप के काटने से हर साल अपने देश में 46 हजार लोगों की जान चली जाती है। जबकि केवल 30 प्रतिशत पीड़ित ही इलाज के लिए अस्पताल पहुंच पाते हैं। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में प्रतिवर्ष 4500 लोग सांप के काटने से अपनी जान गंवा देते हैं। मुजफ्फरपुर के सरकारी अस्पतालों में प्रतिदिन औसतन एक या दो मरीज ही सर्पदंश के बाद एंटी स्नेक वेनम लेते पहुंचते हैं जबकि मुजफ्फरपुर के भगवानपुर यादव नगर स्थित सांपकट्टी अस्पताल में इलाज के लिए प्रतिदिन आने वालों की संख्या औसतन 200 है।
पत्थर से होता है सर्पदंश का इलाज
चाहे कितना भी जहरीले सांप काट ने काटा हो इस अस्तपाल में मौजूद पत्थर सटाते ही चार से पांच घंटों में सांप का विष शरीर से बाहर हो जाता है। पत्थर शरीर के सारे विष को चूस लेता है। सांप के काटने की जगह पर लगाते समय पत्थर का रंग सफेद होता है पर जहर चूसते ही वह काला पड़ जाता है। शरीर से जहर का प्रभाव खत्म होते ही पत्थर स्वयं गिर जाता है। इसके बाद मरीज स्वस्थ हो जाता है।
मरीज को सोने नहीं देते, पिलाई जाती है कड़वी चाय
मनियारी के मो़ हैदर को गुरुवार की अहले सुबह घर के पास हीं जहरीले सांप ने काट लिया। बड़े भाई मो.अख्तर ने बताया कि अस्पताल के चिकित्सक की सलाह पर सांप काटे हुए जगह के ऊपर रस्सी से बांध कर मरीज को अस्पताल ले आये। अब यहां उसका इलाज चल रहा है। देवरिया कोठी की एक 18 वर्षीय छात्रा रूबी कुमारी को अहले सुबह घर के पास जहरीले सांप ने काट लिया। सुबह में अस्पताल लाया गया। इलाज चल रहा, उसकी हालत स्थिर है। अस्पताल में सांप काटने के इलाज के दौरान मरीज को सोने नहीं दिया जाता। जबतक पत्थर शरीर से स्वयं न हट जाए मरीज को टहलने के लिए कहा जाता है और नींद भगाने के लिए मरीज को कड़वी चाय पिलाई जाती है।
उत्तर बिहार के लिए वरदान
भगवानपुर स्थित प्रभात तारा सांप कटी अस्पताल के पास पिछले दस साल से दवा की दुकान चला रहे सरोज कुमार बताते हैं कि उत्तर के लिए यह अस्पताल किसी वरदान से कम नहीं है। यहां पर सांप के काटे हुए लोगों का पत्थर से इलाज किया जाता है। पांच घंटे तक पत्थर को मरीज के सांप काटे हुए जगह के आसपास सटा कर रखा जाता है। उसके बाद वह स्वस्थ हो जाता है। अप्रैल से अक्टूबर तक सर्पदंश की घटनाएं बढ़ जाती है। इस सीजन में यहां प्रतिदिन 150 से 200 के करीब मरीज प्रतिदिन आते हैं। समय पर पहुंच गए 99 फीसदी रोगी यहां से स्वस्थ होकर लौटते हैं।
पत्थर का रहस्य का कायम
अस्पताल प्रशासन ने बताया कि यह अस्पताल जर्मनी के एक ट्रस्ट द्वारा 12 दिसंबर 1976 को स्थापित किया गया था। उसके बाद से यहां अस्पताल संचालित हो रही है। अस्पताल में कार्यरत चिकित्सक से लेकर नर्स तक दक्षिण भारत के हैं। सभी इसाई समाज से हैं। अस्पताल के नर्स ने बताया कि जिस पत्थर से सांप काटने का इलाज किया जाता है वह विदेश से आता है। सांप का जहर चूसकर लोगों को नई जिंदगी देने वाले उस पत्थर के बारे में हर कोई जानना चाहता है कि आखिर वह कौन सा पत्थर है, उसकी क्या खासियत है। कैसे वह सांप के जहर को निष्प्रभावी कर देता है। पर, यह राज 47 वर्षों में कोई नहीं जान पाया। अस्पताल में काम करने वाला कोई भी चिकित्सक-कर्मचारी इस बारे में किसी से कोई बात नहीं करता।