पूर्णिया
पूर्णिया जिला मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर उत्तर की दिशा में स्थित आदिवासी बहुल झील टोला गांव के हर घर में एक फुटबॉल खिलाड़ी है। गांव के 20 से अधिक युवा राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय फुटबॉल प्रतिस्पर्धा में अबतक भाग ले चुके हैं। गांव के युवा फुटबॉल टूर्नामेंट को उत्सव की तरह मनाते हैं। फुटबॉल के भगवान कहे जाने वाले मेस्सी और रोनाल्डो के फोटो अधिकतर घरों में लगे हैं। उनसे प्रतिदिन खेलने की प्रेरणा लेते हैं।
सरना फुटबॉल क्लब झील टोला के खिलाड़ी अमित लकड़ा 5 साल तक कोलकाता समेत देश के अन्य राज्यों में भारतीय खेल प्राधिकार बतौर कोच की भूमिका निभा चुके हैं। राहुल तिर्की, विकास कच्छप, मनीष कुमार, जयंत दास ने हाल के दिनों में नेशनल खेल कर वापस लौटे हैं। क्लब के अभिजीत हेंब्रम संतोष ट्रॉफी में अपना परचम लहरा कर वापस आए हैं। उन्हें जिला प्रशासन समेत कई अन्य संस्थाओं के द्वारा सम्मानित भी किया गया।
प्रमंडलीय आदिवासी छात्र एवं युवा समिति के अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार उरांव ने बताया कि झील टोला के युवा फुटबॉल में लगातार अपना परचम लहरा रहे हैं। वह कहते हैं कि 5 दशक से लगातार यह परंपरा गांव में बनी हुई है। बिना किसी दबाव के ही प्रत्येक घर से फुटबॉल मैच का प्रैक्टिस करने के लिए लड़का-लड़की मैदान में पहुंचते हैं। गांव में फुटबॉल का 15 दिवसीय टूर्नामेंट प्रत्येक साल अगस्त माह में होता है। अपने आराध्य देव सरहुल बाहा पूजा में भले ही कोई बाहर से छुट्टी लेकर नहीं आए, लेकिन फुटबॉल के टूर्नामेंट में शामिल होने के लिए जरूर आते हैं। अब तक इस गांव के 15 से अधिक लड़के-लड़कियां फुटबॉल खेलकर सरकारी नौकरी में जा चुके हैं।
कई नेशनल स्तर पर कोच की भूमिका निभा रहे हैं तो कई निजी संस्थान में सेवा देकर इस इलाके का नाम रोशन कर रहे हैं। हाल ही में इसी गांव की शबनम और आरती ने बिहार पुलिस में योगदान दिया है। बीएसएफ, आर्मी और अन्य सेना में खेल कोटा से इस गांव के युवा नौकरी में जा चुके हैं। गर्मी में भी युवा सुबह से लेकर देर शाम तक फुटबॉल का प्रैक्टिस करते हुए देखे जाते हैं।