बिहार के इस गांव में बेटियों को शादी में दिया जाता है अनूठा गिफ्ट, जानकर हो जाएंगे हैरान

बगहा
रुक्मिणी की शादी 12 वर्ष पहले बरवैना गांव में हुई। विवाह के समय उसे मायके से उपहार में एक पोखर मिला था। ससुराल वाले उसे ‘पोखर वाली बहू’ कहकर बुलाते हैं। अब पोखर की आय से परिवार फल-फूल रहा है। लिहाजा, उसे ससुराल में खूब सम्मान मिलता है। बगहा-2 प्रखंड के थरुहट क्षेत्र चौपारन तपा के बकुली गांव में बेटियों को मान देने के लिए उन्हें शादी में बतौर उपहार पोखर देने की अनूठी परंपरा कई वर्षों से चल रही है।
थारुओं के इस गांव के आसपास 20-25 वर्ष पहले नहर की खुदाई हुई। इससे गड्ढे बन जाने से खेती की जमीन बर्बाद हो गई तो लोगों ने इनमें पोखर खुदवाकर मछलीपालन शुरू किया। इस काम में पुरुषों को रुचि कम देखकर बेटियां ही तालाब की देखभाल से मछली पालन तक का जिम्मा उठाने लगीं। बाद में इन बेटियों की शादी होती तो वह पोखर भी उन्हें ही उपहार स्वरूप दिया जाने लगा। धीरे-धीरे इसने परंपरा का रूप ले लिया।
चौपारन तपा अध्यक्ष हेमराज पटवारी बताते हैं किगांव में लोग बेटियों की शादी से तीन से पांच साल पहले उनके नाम से पोखर या तालाब खुदवा लेते हैं। यह पूरी तरह से लड़की की संपत्ति होती है। उसमें मछली पालना, बेचना सब उसका होता है। अखिल भारतीय थारू कल्याण महासंघ के अध्यक्ष दीपनारायण प्रसाद ने बताया कि बकुली थरुहट का मछली गांव है। यहां 80 फीसदी परिवारों के पास अपना पोखरा है।
ग्रामीण अमरलाल प्रसाद, प्रमोद काजी, सत्यनारायण प्रसाद कहते हैं, बेटियों को पोखर देने से न केवल नए घर में उनका सम्मान होता है बल्कि मायके से भी उनका नाता हमेशा जुड़ा रहता है। अमृता देवी कहती है कि मैंने बेटी को पोखर दिया है। उसकी देखभाल हम ही करते हैं। लेकिन इससे होने वाली आय लेने वह मायके आती है। बेटियां अपने हिसाब से पोखर की जिम्मेवारी ग्रामीण, मछुआरे या माता-पिता, भाई को सौंप देती हैं। 12 वर्षीय सोनम, 8 वर्षीय मीरा बताती है कि उनके नाम का भी पोखर है।
पोखर के हिसाब से आंकी जाती है हैसियत
बकुली व उसके पास ही स्थित गांव मझौवा में लोगों की हैसियत पोखर से आंकी जाती है। जिसके पास जितने रकबे का पोखर उसकी उतनी हैसियत। बकुली गांव में अब तक 40 पोखरे खोदे जा चुके हैं। संख्या बढ़ती जा रही है। गांव में मनरेगा व मत्स्य विभाग की तरफ से भी पोखर की खुदाई करायी गयी है। बकुली व मझौवा में हर तीसरे परिवार के पास पोखर है। कई ऐसे परिवार हैं जिनके पास चार से पांच पोखर हैं। गांव में सालाना डेढ़ से दो सौ क्विंटल मछली का उत्पादन होता है। यहां के लोग तेलांगना के काकीनाडा और कोलकाता के बैरकपुर से मछली पालन का प्रशिक्षण ले चुके हैं।

